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वायुमंडलीय ऑक्सीजन के संतुलन में शैवाल की भूमिका

शैवाल (अल्गी) पादपजात के सबसे प्रारंभिक वर्ग का पौधा है। हिंदी में सामान्यतः इसे ‘काई’ भी कहते है। शैवाल जैविक विकास के दौरान उच्च वनस्पतियों के उत्तरोत्तर विकास एवं पादप विविधता को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भमिका अदा करती है। इसकी संरचना बहुत ही सामान्य होती है, जिसे थैलस कहते है। सामान्यतः शैवाल जलीय पारिस्थितिकी में पाए जाते है। लेकिन अपनी विशिष्ट संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अनुकूलता के

कारण, शैवाल की बहुत सी प्रजातियां ऐसी है जो की असामान्य आवास जैसे मिट्टी, वायु, अन्य पौधे, बर्फ, अति उष्ण इत्यादि परिवर्तनीय वातावरण में भी पाए जाते है। जलीय वातावरण में उगने वाले शैवाल भी अनेक तरह की अनुकूलताओ के कारण नदी, नाले, झील, तालाब, समुद्र इत्यादि में विविधता के साथ पाए जाते है। आकार की दृष्टि से भी शैवाल बहुत ही विविधता प्रदर्शित करती है। ये कुछ माइक्रोन (जैसे माइक्रोसिस्टिस, डायटम्स, साइनोबैक्टेरिया इत्यादि) से लेकर कई मीटर तक (जैसे अल्वा, सर्गासम, फ्यूकस, लेमिनारिया इत्यादि) के होते है। विश्व भर में शैवालों की लगभग 44 हजार प्रजातियां (टैक्सा) पायी जाती है, जिसमे से भारत में लगभग 7411 प्रजातियां (टैक्सा) पायी जाती है (प्लांट डिस्कवरी, 2018)।


स्थलीय पौधों की तरह शैवालों में भी प्रकाश संश्लेषण(फोटोसिंथेसिस) की क्षमता होती है जो इसे सूर्य की रोशनी में CO2 एवं H2O को सिंथेसिस कर ऑर्गनिक तत्व (कार्बोहाइड्रेट ) में बदल कर ऑक्सीजन छोड़ती है। शैवाल में क्लोरोफिल के अलावा कुछ अन्य रंगद्रव्य जैसे कैरोटीनोइड्स, फाइकोबिलीप्रोटीन्स (फाइकोसियनिन्स, फाइकोएरीथ्रिंस) इत्यादि होते है जो सूर्य की रोशनी से विभिन्न तरंग दैर्ध्य (वेभलेंग्थ) की किरणो को अवशोषित करती है। अतः विभिन्न शैवालों द्वारा फोटोसिंथेसिस की क्षमता उसमे पाए जाने वाले रंगद्रव्य (पिगमेंट्स) की उपस्थिति पर निर्भर करती है।


शैवाल का जलीय पारिस्थितिकी में महत्त्व

शैवाल जलीय पारिस्थितिकी में खाद्य श्रृंखला में प्राथमिक उत्पादक (Primary producer) का काम करती है। यह जलीय जीवो जैसे मछली, क्रैब, स्पंज, मोलस्क इत्यादि के लिए भोजन एवं प्रजनन प्रक्रिया हेतु आवश्यक आवास (ब्रीडिंग ग्राउंड) प्रदान करती है। क्लोरोफील की उपस्थिति के कारण शैवाल स्थलीय उच्च पौधों की तरह ऑक्सीजन का उत्सर्जन कर जल में पाए जाने वाले विघटित / घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen) को संतुलित करती है जिसे जलीय जीव श्वसन प्रक्रिया में उपयोग करती है। जल में घुलित ऑक्सीजन (DO) की संतुलित मात्रा जलीय पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। किसी कारण से जब जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है तो जलीय जीवो के लिए समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः मॉनसून के दौरान जब वर्षा जल का बहाव नदियों, तालाबों, झीलों या समुद्र में होता है तो उस समय जल की DO वैल्यू बढ़ जाती है। इसीतरह, ग्रीष्म ऋतू में वाष्पीकरण की अधिक मात्रा के कारण DO की मात्रा घट जाती है।


शैवाल का वायुमंडलीय ऑक्सीजन के संतुलन में महत्त्व

हम जानते है की पृथ्वी का लगभग 70 % भाग जल क्षेत्र (महासागर) है। बाकि 30 % भाग ही स्थल है जिसपर मनुष्य के साथ-साथअन्य जीव जंतुओं एवं नदी, झील, पर्वतमालाएं, वन, मरुस्थल, सवाना इत्यादि अनेक तरह की पारिस्थितिकी पाई जाती है। जैविक विकास के क्रम में सबसे पहले प्रोकैरियोटिक शैवाल (जैसे BGA) की उत्पति हुई जो की प्रतिकूल वातावरण एवं ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी प्रकाश संश्लेषण(फोटोसिंथेसिस) कर ऑक्सीजन उत्सर्जित किया (चैपमैन, 2013) । इन प्रोकैरियोटिक शैवालो द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन की अधिकांश मात्रा महासागरों में अवस्थित जल द्वारा अवशोषित कर ली गई। फिर लाखो - करोड़ो वर्षो तक वायुमंडल में ऑक्सीजन का संचय होता गया जो कालांतर में अन्य यूकैरियोटिक जीवो जैसे, अन्य शैवाल, स्थलीय पेड़ पौधों, जीव जन्तुओ इत्यादि की उत्पति हुई । हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन का प्रतिशत लगभग 21 % है जो पृथ्वी पर लाखो-करोड़ो वर्षो तक हुए प्रकाश संश्लेषण के कारण संचित हुआ होगा। इस संचित ऑक्सीजन के भंडार में शैवालों द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। क्योकि, स्थलीय पौधों द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन की अधिकांश हिस्सा पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीव जन्तुओ द्वारा उपयोग कर लिया जाता है। साथ ही, जलीय पारिस्थितिकी, जो की पृथ्वी की सतहिय क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत है, शैवालों (फाइटो प्लांकटोंस, डायटम्स, सुक्ष्म शैवाल, दीर्घ शैवाल इत्यादि) को एक विस्तृत आवास प्रदान करती है। इस तरह, अनुमानतः वायुमंडल में संचित ऑक्सीजन की अधिकांश मात्रा शैवालों द्वारा उत्सर्जित किया गया है। अनुमानतः हमारे वायुमंडल की लगभग 30-50 % ऑक्सीजन का उत्सर्जन इन शैवालों के द्वारा किया जाता है।


क्लोरेला, जो क्लोरोफाइसी वर्ग का एककोशिकीय (Unicellular) शैवाल है, अपनी अद्भुत उपयोगित के लिए प्रसिद्ध है। इसे अंतरिक्ष शैवाल (Space Algae) भी कहते है। यह आकर में गोलाकार एवं 2-10 माइक्रॉन की परिधि की होती है। यह मानव के लिए एक पौष्टिक खाद्य शैवाल (एडिबल अल्गी) है जिसे अंतरिक्षयात्री अपने साथ ले जाते है क्योकि यह बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन छोड़ती है एवं अंतरिक्षयात्री द्वारा छोड़े गए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती है। क्लोरेला की इस प्रवृति के कारण इस महत्वपूर्ण शैवाल पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) सहित कई अनुसंधान संस्थानों द्वारा अनुसन्धान जारी है। अतः पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की उपस्थिति को संतुलित करने में शैवाल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

निष्कर्षः शैवाल पादप विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह जलीय पारिस्थितिकी में आहार श्रृंखला को संतुलित करने के साथ-साथ वायुमंडल में ऑक्सीजन की उपलब्धता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शैवाल वनस्पति जगत का एक प्रारंभिक (प्रिमिटिव) पौधा होने के बावजूद भी पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने में अहम योगदान रखती है। अतः इसके इसके संरक्षण पर जोर देते हुए एवं इसपर और अधिक अनुसन्धान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

डा. सुधीर कुमार यादव ,वनस्पतिज्ञ भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण मुख्यालय , कोलकाता भारत सरकार


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